नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़ है या वाजिब?
नमाज़े जनाज़ा फ़र्ज़े किफ़ाया है यानी अगर एक शख़्स ने पढ़ली तो सब बरीउलज़िम्मा हो गए और अगर ख़बर हो जाने के बाद किसी ने ना पढ़ी तो सब गुनाहगार हुए, इस के लिये जमाअ़त शर्त नहीं एक शख़्स भी पढ़ ले तो फ़र्ज़ अदा हो गया। इस की फ़िर्ज़य्यत का इन्कार कुफ़्र है।
नमाज़े जनाज़ा के रुक्न और सुन्नतें
नमाज़े जनाज़ा में दो रुक्न और तीन सुन्नतें हैं
दो रुक्न यह हैं: चार बार "अल्लाहो अकबर" कहना और क़ियाम। तीन सुन्नते मुअक्कदा यह हैं: सना, दुरूद शरीफ़, मय्यित के लिये दुआ। 📚 बहारे शरीअत
नमाज़े जनाज़ा का तरीक़ा (हनफी)
मुक़्तदी इस तरह़ निय्यत करे: "मैं निय्यत करता हूं इस जनाज़े की नमाज़ की, वास्ते अल्लाह के, दुआ इस मय्यित के लिये, पीछे इस इमाम के"
1. पहली तकबीर
अल्लाहो अकबर कहते हुए अब इमाम व मुक़्तदी कानों तक हाथ उठाएं और फिर नाफ़ के नीचे बांध लें और सना पढ़ें:
سُبْحَانَكَ اللّٰهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَ تَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالٰی جَدُّكَ وَجَلَّ ثَنَاءُكَ وَلَااِلٰه غَيْرُكَ
सना में ध्यान रखें कि "वताला जद्दोका" के बाद "वजल्ला सनाओका वलाइलाहा ग़ैरोका" पढ़ें
2. दूसरी तकबीर
फिर बिग़ैर हाथ उठाए "अल्लाहो अकबर" कहें, फिर दुरूदे इब्राहीम पढ़ें:
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّعَلٰی آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلٰی اِبْرَاهِيمَ وَعَلٰی آلِ اِبْرَاهِيمَ اِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ اَللَّهُمَّ بَارِكْ عَلٰی مُحَمَّدٍ، وَعَلٰی آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلٰی اِبْرَاهِيمَ وَعَلٰی آلِ اِبْرَاهِيمَ اِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
3. तीसरी तकबीर
फिर बिग़ैर हाथ उठाए "अल्लाहो अकबर" कहें और दुआ पढ़ें (इमाम तक्बीरें बुलन्द आवाज़ से कहे और मुक़्तदी आहिस्ता। बाक़ी तमाम अज़्कार इमाम व मुक़्तदी सब आहिस्ता पढ़ें)
4. चौथी तकबीर
दुआ के बाद फिर "अल्लाहो अकबर" कहें और हाथ लटका दें फिर दोनों तरफ़ सलाम फेर दें। सलाम में मय्यित और फिरिश्तों और हाज़िरीने नमाज़ की निय्यत करे, उसी तरह़ जैसे और नमाज़ों के सलाम में निय्यत की जाती है यहां इतनी बात ज़्यादा है कि मय्यित की भी निय्यत करे।
जनाज़े की दुआएं (Janaze Ki Dua)
बालिग़ मर्द व औरत के जनाज़े की दुआ
اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لِحَيِّنَا وَمَيِّتِنَا وَ شَاهِدِنَا وَ غَائِبِنَا وَ صَغِيْرِنَا وَكَبِيْرِنَا وَ ذَكَرِنَا وَاُنْثَانَا
इलाही! बख़्श दे हमारे हर जिन्दा को और हमारे हर फ़ौत शुदा को और हमारे हर हाज़िर को और हमारे हर ग़ाइब को और हमारे हर छोटे को और हमारे हर बड़े को और हमारे हर मर्द को और हमारी हर औरत को। इलाही! तू हम में से जिस को जिन्दा रखे तो उस को इस्लाम पर जिन्दा रख और हम में से जिस को मौत दे तो उस को ईमान पर मौत दे। (अल मुस्तदरक लिलहाकिम हदीस 1366)
ना बालिग़ लड़के की दुआ
اَللّهُمَّ اجْعَلْهُ لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهُ لَنَا اَجْرًا وَّ ذُخْرًا وَّ اجْعَلْهُ لَنَا شَافِعًا وَّ مُشَفَّعًا
इलाही! इस (लड़के) को हमारे लिये आगे पहुंच कर सामान करने वाला बना दे और इस को हमारे लिये अज्र (का मूजिब) और वक़्त पर काम आने वाला बना दे और इस को हमारी सिफ़ारिश करने वाला बना दे और वो जिस की सिफ़ारिश मंजूर हो जाए।
ना बालिग़ लड़की की दुआ
اَللّهُمَّ اجْعَلْهَا لَنَا فَرَطًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا اَجْرًا وَّذُخْرًا وَّاجْعَلْهَا لَنَا شَافِعَةً وَّمُشَفَّعَةً
इलाही! इस (लड़की) को हमारे लिये आगे पहुंच कर सामान करने वाली बना दे और इस को हमारे लिये अज्र (का मूजिब) और वक़्त पर काम आने वाली बना दे और इस को हमारी सिफ़ारिश करने वाली बना दे और वो जिस की सिफ़ारिश मंजूर हो जाए।
नमाज़े जनाज़ा की फ़ज़ीलत (Janaze Ki Namaz ki Fazilat)
क़ब्र में पहला तोहफ़ा
सरकारे दो आलम ﷺ से किसी ने पूछा : मोमिन जब क़ब्र में दाख़िल होता है तो उस को सब से पहला तोहफ़ा क्या दिया जाता है? तो इर्शाद फ़रमाया : उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ने वालों की मग़फ़रत कर दी जाती है।
उहुद पहाड़ जितना सवाब
हज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा रज़िअल्लाह अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ फरमाते है : जो शख़्स (ईमान का तकाज़ा समझ कर और हुसूले सवाब की निय्यत से) अपने घर से जनाज़े के साथ चले, नमाज़े जनाज़ा पढ़े और दफ़न होने तक जनाज़े के साथ रहे उस के लिये दो क़ीरात सवाब है जिस में से हर क़ीरात उहुद (पहाड़) के बराबर है और जो शख़्स सिर्फ़ जनाज़े की नमाज़ पढ़ कर वापस आ जाए तो उस के लिये एक क़ीरात सवाब है।
नमाज़े जनाज़ा बाइसे इबरत है
हज़रते सय्यिदुना अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़िअल्लाह अन्हो का इर्शाद है : मुझ से सरकारे दो आलम ﷺ ने फ़रमाया : क़ब्रों की ज़ियारत करो ताकि आख़िरत की याद आए और मुर्दे को नहलाओ कि फ़ानी जिस्म (यानी मुर्दा जिस्म) का छूना बहुत बड़ी नसीहत है और नमाज़े जनाज़ा पढ़ो ताकि यह तुम्हें ग़मगीन करे क्यूं कि ग़मगीन इन्सान अल्लाह के साए में होता है और नेकी का काम करता है।
मय्यित को नहलाने वगैरा की फज़ीलत
मौलाए काएनात, हज़रते सय्यिदुना अलिय्युल मुर्तज़ा शेरे ख़ुदा अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि हुज़ूरﷺ ने इर्शाद फ़रमाया कि जो किसी मय्यित को नहलाए, कफ़न पहनाए, ख़ुश्बू लगाए, जनाज़ा उठाए, नमाज़ पढ़े और जो नाक़िस बात नज़र आए उसे छुपाए वो अपने गुनाहों से ऐसा पाक हो जाता है जैसा जिस दिन मां के पेट से पैदा हुवा था।
जनाज़ा देख कर पढ़ने का विर्द
हज़रते सय्यिदुना मालिक बिन अनस रज़िअल्लाह अन्हो को बादे वफ़ात किसी ने ख़्वाब में देख कर पूछा : अल्लाह ने आप के साथ क्या सुलूक फ़रमाया? कहा : एक कलिमे की वज्ह से बख्श दिया जो हज़रते सय्यिदुना उस्माने ग़नी रज़िअल्लाह अन्हो जनाज़े को देख कर कहा करते थे- "सुब्हानल हय्यिल्लज़ी यालमुतो" (वो ज़ात पाक है जो जिन्दा है उसे कभी मौत नहीं आएगी)। लिहाज़ा मैं भी जनाज़ा देख कर यही कहा करता था यह कलिमा कहने के सबब अल्लाह ने मुझे बख्श दिया। (अहयाउल उलूम)
नमाज़े जनाज़ा के मसाएल (Janaze Ki Namaz Ke Masail)
तकबीर के वक़्त सर उठाना
नमाज़े जनाज़ा में तकबीर के वक़्त सर उठाकर आसमान की तरफ देखना ज़रूरी नहीं है, बल्कि ग़लत है।
जूते पर खड़े हो कर जनाज़ा पढ़ना
जूता पहन कर अगर नमाज़े जनाज़ा पढ़ें तो जूते और ज़मीन दोनों का पाक होना ज़रूरी है और जूता उतार कर उस पर खड़े हो कर पढ़ें तो जूते के तले और ज़मीन का पाक होना ज़रूरी नहीं।
एहतियात यही है कि जूता उतार कर उस पर पाउं रख कर नमाज़ पढ़ी जाए ताकि ज़मीन या तला अगर नापाक हो तो नमाज़ में ख़लल न आए।" (फ़तावा रज़विय्या मुख़र्रजा, जि. 9, स. 188)
ग़ाइबाना नमाज़े जनाज़ा
मय्यित का सामने होना ज़रूरी है, ग़ाइबाना नमाज़े जनाज़ा नहीं हो सकती। मुस्तहब यह है कि इमाम मय्यित के सीने के सामने खड़ा हो।
चन्द जनाज़ों की इकठ्ठी नमाज़
चन्द जनाज़े एक साथ भी पढ़े जा सकते हैं, इस में इख्तियार है कि सब को आगे पीछे रखें यानी सब का सीना इमाम के सामने हो या कितार बन्द। यानी एक के पाउं की सीध में दूसरे का सिरहाना और दूसरे के पाउं की सीध में तीसरे का सिरहाना (यानी इसी पर क़ियास कीजिये)। (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 839,)
जनाज़े में कितनी सफ़ें हों?
बेहतर यह है कि जनाज़े में तीन सफ़ें हों कि हदीसे पाक में है : "जिस की नमाज़ (जनाज़ा) तीन सफ़ों ने पढ़ी उस की मग़फ़रत हो जाएगी।" अगर कुल सात ही आदमी हों तो एक इमाम बन जाए अब पहली सफ़ में तीन खड़े हो जाएं दूसरी में दो और तीसरी में एक। जनाज़े में पिछली सफ़ तमाम सफ़ों से अफ़ज़ल है।
जनाज़े की पूरी जमाअत न मिले तो?
मस्बूक़ (यानी जिस की बाज़ तक्बीरें फ़ौत हो गइं वोह) अपनी बाक़ी तक्बीरें इमाम के सलाम फेरने के बाद कहे और अगर यह अन्देशा हो कि दुआ वग़ैरा पढ़ेगा तो पूरी करने से क़ब्ल लोग जनाज़े को कन्धे तक उठा लेंगे तो सिर्फ़ तक्बीरें कह ले दुआ वग़ैरा छोड़ दे।
चौथी तक्बीर के बाद जो शख़्स आया तो जब तक इमाम ने सलाम नहीं फेरा शामिल हो जाए और इमाम के सलाम के बाद तीन बार "अल्लाहो अकबर" कहे। फिर सलाम फेर दे।
पागल या ख़ुदकुशी वाले का जनाज़ा
जो पैदाइशी पागल हो या बालिग़ होने से पहले पागल हो गया हो और इसी पागल पन में मौत वाक़ेअ हुई तो उस की नमाज़े जनाज़ा में ना बालिग़ की दुआ पढ़ेंगे। जिस ने ख़ुदकुशी की उस की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाएगी।
मुर्दा बच्चे के अहकाम
मुसल्मान का बच्चा जिन्दा पैदा हुवा यानी अक्सर हिस्सा बाहर होने के वक़्त जिन्दा था फिर मर गया तो उस को ग़ुस्ल व कफ़न देंगे और उस की नमाज़ पढ़ेंगे, वरना उसे वैसे ही नहला कर एक कपड़े में लपेट कर दफ़न कर देंगे। इस के लिये सुन्नत के मुताबिक़ ग़ुस्ल व कफ़न नहीं है और नमाज़ भी इस की नहीं पढ़ी जाएगी। सर की तरफ़ से अक्सर की मिक़दार सर से ले कर सीने तक है। लिहाज़ा अगर इस का सर बाहर हुवा था और चीख़ता था मगर सीने तक निकलने से पहले ही फ़ौत हो गया तो उस की नमाज़ नहीं पढ़ेंगे। पाउं की जानिब से अक्सर की मिक़दार कमर तक है। बच्चा जिन्दा पैदा हुवा या मुर्दा या कच्चा गिर गया उस का नाम रखा जाए और वो क़ियामत के दिन उठाया जाएगा। (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 841)
जनाज़े को कन्धा देने का सवाब
हदीसे पाक में है : "जो जनाज़े को चालीस क़दम ले कर चले उस के चालीस कबीरा गुनाह मिटा दिये जाएंगे।" नीज़ हदीस शरीफ़ में है : जो जनाज़े के चारों पायों को कन्धा दे अल्लाह उस की हत्मी (यानी मुस्तक़िल) मग़फ़रत फ़रमा देगा। (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 823)
जनाज़े को कन्धा देने का तरीक़ा
जनाज़े को कन्धा देना इबादत है। सुन्नत यह है कि यके बाद दीगरे चारों पायों को कन्धा दे और हर बार दस दस क़दम चले। पूरी सुन्नत यह है कि पहले सीधे सिरहाने कन्धा दे फिर सीधी पाइंती (यानी सीधे पाउं की तरफ़) फिर उलटे सिरहाने फिर उलटी पाइंती और दस दस क़दम चले तो कुल चालीस क़दम हुए। (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 822) बाज़ लोग जनाज़े के जुलूस में एलान करते रहते हैं, दो दो क़दम चलो! उन को चाहिये कि इस तरह़ एलान किया करें : "दस दस क़दम चलो।"
बच्चे का जनाज़ा उठाने का तरीक़ा
छोटे बच्चे के जनाज़े को अगर एक शख़्स हाथ पर उठा कर ले चले तो हरज नहीं और यके बाद दीगरे लोग हाथों हाथ लेते रहें। औरतों को (बच्चा हो या बड़ा किसी के भी) जनाज़े के साथ जाना ना जाइज़ व मम्नूअ है। (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 823,)
नमाज़े जनाज़ा के बाद वापसी के मसाइल
जो शख़्स जनाज़े के साथ हो उसे बिग़ैर नमाज़ पढ़े वापस न होना चाहिये और नमाज़ के बाद औलियाए मय्यित (यानी मरने वाले के सर परस्तों) से इजाज़त ले कर वापस हो सकता है और दफ़न के बाद इजाज़त की हाज़त नहीं।
क्या शोहर बीवी के जनाज़े को कन्धा दे सकता है?
शोहर अपनी बीवी के जनाज़े को कन्धा भी दे सकता है, क़ब्र में भी उतार सकता है और मुंह भी देख सकता है। सिर्फ़ ग़ुस्ल देने और बिला हाइल बदन को छूने की मुमानअत है। औरत अपने शोहर को ग़ुस्ल दे सकती है। (बहारे शरीअत, जि. 1, स. 812, 813)
बालिग़ की नमाज़े जनाज़ा से क़ब्ल
यह एलान कीजिये महरूम के अज़ीज़ व अहबाब तवज्जोह फ़रमाएं! महरूम ने अगर जिन्दगी में कभी आप की दिल आज़ारी या हक़ तलफ़ी की हो या आप के मक़रूज़ हों तो इन को रिज़ाए इलाही के लिये मुआफ़ कर दीजिये, महरूम का भी भला होगा और आप को भी सवाब मिलेगा।
असर या फजर की नमाज़ के बाद जनाज़ा
असर या फ़जर की नमाज़ के बाद जनाज़ा पढ़ना जाइज़ है, और ये जो आवाम में मशहूर है के जाइज़ नहीं है, ग़लत है,
सूरज निकलने, डूबने या ज़वाल के वक़्त जनाज़ा
जनाज़ा अगर इन्ही वक़्तों में लाया गया तो नमाज़ इन्ही वक़्तों में पढ़ें कोई कराहत नहीं कराहत उस सूरत में है के पेशतर (पहले) से तैयार मौजूद है और ताख़ीर (देर) की यहां तक के वक़्ते कराहत आ गया, 📚 बहारे शरीअत
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