Sadr-ul-shariyah Hazrat-e-Allamah Mufti Muhammad Amjad Ali Azami Farmatay Hain: Mah-e-Rajab Main Baz Jagah Hazrat-e-imam Ja’far Sadiq Ko Isaal-e-sawab Kay Liye Puriyon Ke Kunday Bhary Jate Hain Yeh Bhi Ja`iz Magar Is Main Bhi Usi Jagah Ba’zon (Kuch Logo) Nay Khanay Ki Pabandi Kar Rakhi Hay Yeh Beja Pabandi Hay. Is Kunday Kay Muta’alliq Aik Kitab Bhi Hay Jis Ka Naam “dastaan-e-Ajeeb” Hai Is Mauqay Par Baz Log Us Ko Parhwate Hain Is Main Jo Kuchh Likha Hay Us Ka Koi Suboot Nahin Woh Nah Parhi Jay Fatihah Dilwa Kar Isaal-e-sawab Karayn.(Bahar-e-shariya’t, Hissah 16, Jild 03, Safhah 643) Isi Tarha “das Bibiyon Ki Kahani”, “lakkar Hare Ki Kahani” Aur “janab Sayyidah Ki Kahani” Sab Man Gharat Qissay Hain In Ko Nah Parha Kare, Is Kay Bajay Surah-e-yaseen Shareef Parh Liya Karayn Keh (Hadees-e-pak Ke Mutabiq) Das Qur`an Khatam Karnay Ka Sawab Milay Ga. Yeh Bhi Yad Rahay Keh Kunday Main Hi Kheer Khana, Khilana Zaruri Nahin Dusry Bartan Main Bhi Kha Aur Khila Saktay Hain Aur Is Ko Ghar Se Bahar Bhi Lay Ja Saktay Hain. Bay Shak Niyaz-o-fatihah Ki Asal Ya’ni Buniyad Isaal-e-sawab Hay Aur Kunday Ki Niyaz Isaal-e-sawab Ki Aik Qisam Hay. Isaal-e-sawab (Ya’ni Sawab Pohnchana) Qur`an-e-kareem O Ahadees-e-mubarkah Say Sabit Hay, Isaal-e-sawab Du’a Kay Zariyay’ Bhi Kiya Ja Sakta Hay Aur Khana Waghairah Paka Kar Us Par Fatihah Dila Kar Bhi. Is Ko Na-ja`iz Kehna Shari’at Par Ifira (Ya’ni Tohmat Bandhna) Hay. Na-ja`iz Kehnay Walay Parah 7 Surah Al-ma`idah Ki Ayat Number 87 Main Bayan Kardah Hukm-e-ilahi Se ‘ibrat Pakren. Chunanchayh Irshad Hota Hay:
सवाल
: - क्या फरमाते हैं उलमाए किराम मुफ़तियाने इज़ाम इस मसले पर के कुंडे की फातिहा किस तारीख को दिलाना
चाहिए ?
जवाब :- इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू का विसाल 15 रजब उल मुरज़्जब को हुआ था इस लिए 15 को ही करना मुनासिब है। फ़तावा फ़क़ीहे मिल्लत में है के “22 रजब के बजाए हज़रत इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू की नियाज़ 15 रजब को करें के हज़रत का विसाल 15 रजब ही को हुआ है, न के 22 रजब को, अलबत्ता 22 रजब को हज़रत अमीर मुअवियह रज़ी अल्लाहु अनहू का विसाल हुआ है तो शिया लोग इस तारीख को हज़रत अमीर मुअवियह रज़ी अल्लाहु अनहू के विसाल की खुशी में ईद मनाते हैं, ओर फ़रेब देने के लिए इसे इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू की नियाज़ कहते हैं, लिहाज़ा सुन्नी हज़रात पर लाज़िम है के शियों के तरीके से दूर रहें। और 22 रजब को हज़रत इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू की नियाज़ न करें, बल्कि 15 रजब को हज़रत का विसाल हुआ है तो उसी तारीख में नियाज़ करें यही बेहतर हैं। { फ़तावा फ़क़ीहे मिल्लत, जिल्द 2. पेज 265}
जवाब :- इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू का विसाल 15 रजब उल मुरज़्जब को हुआ था इस लिए 15 को ही करना मुनासिब है। फ़तावा फ़क़ीहे मिल्लत में है के “22 रजब के बजाए हज़रत इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू की नियाज़ 15 रजब को करें के हज़रत का विसाल 15 रजब ही को हुआ है, न के 22 रजब को, अलबत्ता 22 रजब को हज़रत अमीर मुअवियह रज़ी अल्लाहु अनहू का विसाल हुआ है तो शिया लोग इस तारीख को हज़रत अमीर मुअवियह रज़ी अल्लाहु अनहू के विसाल की खुशी में ईद मनाते हैं, ओर फ़रेब देने के लिए इसे इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू की नियाज़ कहते हैं, लिहाज़ा सुन्नी हज़रात पर लाज़िम है के शियों के तरीके से दूर रहें। और 22 रजब को हज़रत इमाम जाफ़र सादिक रज़ी अल्लाहु अनहू की नियाज़ न करें, बल्कि 15 रजब को हज़रत का विसाल हुआ है तो उसी तारीख में नियाज़ करें यही बेहतर हैं। { फ़तावा फ़क़ीहे मिल्लत, जिल्द 2. पेज 265}
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