क़ज़ा-उमरी का तरीका
क़ज़ा हर दिन की 20 रिकअत होती है।
4.
रिकअत फर्ज़ नमाज़ जुहर के वक़्त की
4.
रिकअत फर्ज़ नमाज़ अस्र के वक़्त की
3.
रिकअत फर्ज़ नमाज़ मगरीब के वक़्त की
4.
रिकअत फर्ज़ नमाज़ ईशा के वक़्त की
क़ज़ा नमाजों की नियत इस तरह कीजिए
जैसे
– फ़जर की क़ज़ा हो तो नियत इस तरह कीजिए
“ सब से पहले फ़जर जो मुझ से क़ज़ा हुई उस को याद करता हु ”
हर नमाज़ मे इसी तरह नियत कीजिए। और अगर लफजे “क़ज़ा” कहना
भूल जाए तो भी कोई हर्ज नहीं, नमाज़ हो जाएगी।
अगर किसी के जिम्मे ज्यादा क़ज़ा नमाजें हों तो उनके लिए कुछ आसानियाँ
पहली आसानी
अगर किसी पर ज्यादा नमाज़े क़ज़ा हो और वो आसानी के लिए रुकुअ
और सजदे की तसबीह 3-3 बार पढ़ने के बाजाए 1-1 बार पढ़ेगा तो भी जाईज़ है।
दूसरी आसानी
फ़जर के अलावा दूसरी चारों फर्ज़ नमाजों की तीसरी और चौथी
रिकअत में सूरह ए फातिहा की जगह सिर्फ 3 बार “सुबहान अल्लाह” कह कर रुकुअ में चल जाए,
मगर वित्र की नमाज़ मे ऐसा ना करें।
तीसरी आसानी
कअदा ए आखिरह ( नमाज़ मे आखिरी बार बैठेने को कअदा ए आखिरह
कहते हैं ) तशहहुद ( यानी अतहीयातु ) के बाद दुरूदे इबराहीम और दुआ की जगह “ अल्लाहुम्मा
सल्ली अला मुहम्मदिवं वा आलिही” कह कर सलाम फेर दे।
चौथी आसानी
वित्र
की तीसरी रिकअत में दुआए कुनूत की
जगह एक बार या 3 बार “ रब्बीग्फिरली ” कहें (फ़तावा रजवीय्याह, जिल्द- 8 पेज 157 )
नमाजे कस्र की क़ज़ा
( सफर में जो नमाज़ पढ़ी जाती है उसे कस्र कहते हैं )
“कस्र में जुहर, अस्र और ईशा
की चार रिकअत फर्ज़ की जगह 2 रिकअत
ही पढ़ें”
सफर में जो नमाज़ क़ज़ा हुई हो उन्हे कस्र
करके ही पढे चाहे सफर में पढे या सफर से वापिस लौट कर घर पर, कस्र की क़ज़ा कस्र ही पढ़ी
जाएगी। और घर पर जो नमाज़ क़ज़ा हों उन्हे पूरी पढे
क़ज़ा नमाजों का वक़्त
क़ज़ा नमाज़ के लिया कोई वक़्त
फिक्स नहीं हैं उम्र में जब भी पढ़ेंगे बरी जिम्मा हो जाएंगे
सिर्फ 3 वक़्त कोई भी नमाज़ ना
पढ़ें
- तुलुअ आफताब ( यानी फ़जर के बाद से सूरज निकलने तक)
- ज़वाल के वक़्त
- गुरूबे आफताब ( सूरज डूबने से 20 मिनट पहले से )
For More Visit :- www.barkatikashana.blogspot.com