Sunte Hain Ki Mahshar Me Sirf Unki Rasai Hai

Sunte Hain Ki Mahshar Me Sirf Unki Rasai Hai



 सुनते हैं कि महशर में सिर्फ़ उन की रसाई है
गर उन की रसाई है लो जब तो बन आई है

मचला है कि रहमत ने उम्मीद बँधाई है
क्या बात तेरी, मुजरिम ! क्या बात बनाई है 

सब ने सफ़-ए-महशर में ललकार दिया हम को
ए बे-कसों के आक़ा ! अब तेरी दुहाई है

यूँ तो सब उन्हीं का है पर दिल की अगर पूछो
ये टूटे हुए दिल ही ख़ास उन की कमाई है

ज़ाइर गए भी कब के, दिन ढलने पे है, प्यारे !
उठ मेरे अकेले चल, क्या देर लगाई है

बाज़ार-ए-'अमल में तो सौदा न बना अपना
सरकार करम तुझ में 'ऐबी की समाई है

गिरते हुओं को मुज़्दा सज्दे में गिरे मौला
रो रो के शफ़ा'अत की तम्हीद उठाई है

ए दिल ! ये सुलगना क्या, जलना है तो जल भी उठ
दम घुटने लगा, ज़ालिम ! क्या धूनी रमाई है

मुजरिम को न शर्माओ, अहबाब ! कफ़न ढक दो
मुँह देख के क्या होगा, पर्दे में भलाई है

अब आप ही सँभालें तो काम अपने सँभल जाएँ
हम ने तो कमाई सब खेलों में गँवाई है

ए 'इश्क़ ! तेरे सदक़े जलने से छुटे सस्ते
जो आग बुझा देगी, वो आग लगाई है

हिर्स-ओ-हवस-ए-बद से, दिल ! तू भी सितम कर ले
तू ही नहीं बेगाना, दुनिया ही पराई है

हम दिल-जले हैं किस के हट फ़ितनों के परकाले
क्यूँ फूँक दूँ इक उफ़ से क्या आग लगाई है

तयबा न सही अफ़ज़ल, मक्का ही बड़ा, ज़ाहिद !
हम 'इश्क़ के बंदे हैं, क्यूँ बात बढ़ाई है

मतला' में ये शक क्या था, वल्लाह ! रज़ा ! वल्लाह !
सिर्फ़ उन की रसाई है, सिर्फ़ उन की रसाई है

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