ख़िलाफ़ होगा ज़माना तो कुछ नहीं होगा
मैं हूँ तुम्हारा दीवाना तो कुछ नहीं होगा
मिटाना चाहे भी दुनिया तो कुछ नहीं होगा
हमारे साथ हैं आक़ा तो कुछ नहीं होगा
निकलता हूँ मैं सफ़र पर इसी यक़ीन के साथ
न चाहेगा मेरा मौला तो कुछ नहीं होगा
सुना है रूह निकलने में जिस्म काँपता है
हो सामने तेरा जल्वा तो कुछ नहीं होगा
हज़ारों मुश्किलें आती हैं आएँ क्या ग़म है
है साथ नाम 'अली का तो कुछ नहीं होगा
ये बात सच है कि, इस्लाम ! तेरे दामन में
न हो हुसैन का सज्दा तो कुछ नहीं होगा
किसी की गंदी नज़र आप को न देखेगी
हो सर पे चादर-ए-ज़हरा तो कुछ नहीं होगा
वहाबियत की नुहूसत का कोई ख़ौफ़ नहीं
बरेली वाला है अपना तो कुछ नहीं होगा
मिज़ाज में भी सुल्ह-ए-कुल्लियत न आएगी
है पीर ताज-ए-शरि'आ तो कुछ नहीं होगा
ग़ुलाम नूर-ए-मुजस्सम के हक़ में ना'त आई
मैं सोचता था कि मेरा तो कुछ नहीं होगा