Tu Shame Risalat Hai
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
तू माह-ए-नुबुव्वत है, ऐ जल्वा-ए-जानाना !
जो साक़ी-ए-कौसर के चेहरे से नक़ाब उठे
हर दिल बने मय-ख़ाना, हर आँख हो पैमाना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
दिल अपना चमक उठे ईमान की तल'अत से
कर आँखें भी नूरानी, ऐ जल्वा-ए-जानाना !
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
सरशार मुझे कर दे इक जाम-ए-लबालब से
ता-हश्र रहे, साक़ी ! आबाद ये मय-ख़ाना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
हर फूल में बू तेरी, हर शम'अ में ज़ौ तेरी
बुलबुल है तेरा बुलबुल, परवाना है परवाना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
पीते हैं तेरे दर का, खाते हैं तेरे दर का
पानी है तेरा पानी, दाना है तेरा दाना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
संग-ए-दर-जानाँ पर करता हूँ जबीं-साई
सज्दा न समझ, नज्दी ! सर देता हूँ नज़राना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
गिर पड़ के यहाँ पहुँचा, मर मर के इसे पाया
छूटे न, इलाही ! अब संग-ए-दर-ए-जानाना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना
सरकार के जल्वों से रौशन है दिल-ए-नूरी
ता-हश्र रहे रौशन नूरी का ये काशाना
तू शम'-ए-रिसालत है, 'आलम तेरा परवाना