- कुरआन अज़ीम को छूने के लिए वुज़ू करना फर्ज़ है |
- जिस का वज़ू ना हो उसे कुरआन मजीद या उस की किसी आयात का छूना हराम है , अलबत्ता छूए बिगैर ज़ुबानी या देख कर कोई आयत पढे तो उस में कोई हर्ज नहीं |
- जिस को नहाने की ज़रूरत हो ( यानी गुसल फर्ज हो ) उसे कुरआन मजीद छूना, अगर चे उस का सादा हाशिया, या जिल्द या गिलाफ छूए, या छूए बिना देख कर या ज़ुबानी पढ़ना, या किसी आयत का नापाकी की हालत में लिखना, या आयत का तावीज़ लिखना, या कुरआन पाक की आयत से लिखा तावीज़ छूना, या कुरआन पाक की आयात वाली अंगूठी जैसे हुरूफे मुकत्ती आत की अंगूठी छूना या पहनना हराम है |
- अगर कुरआन मजीद जुज़दान (गिलाफ) में हो तो जुज़दान पर हाथ लगाने में हर्ज नहीं, यूं ही रुमाल वगैरा किसी ऐसे कपड़े से पकड़ना जो ना अपना ताबेअ हो ना कुरआन मजीद का तो , कुर्ते की आस्तीन, दुपट्टे की आँचल से यहाँ तक के चादर का एक कोना उस के कंधे पर है तो दूसरे कोने से कुरआन पाक छूना हराम है, क्यूँ के ये सब उस के ऐसे ही ताबेअ हैं जैसे कुरआन मजीद का गिलाफ कुरआन मजीद का ताबेअ था |
- रुपये के ऊपर आयत लिखी है हो तो उन सब को ( यानि बे वज़ू शख्स और हैज ओर निफास वाली औरत को ) उस का छूना हराम है, हा अगर रुपये थैली में हों तो थैली उठाना जाईज़ है , यूं जिस बर्तन या गिलास पर सूरत या आयत लिखी हो उस को छूना भी हराम हैं, और उस बर्तन या गिलास को इसतेमाल करना उन सब के लिए मकरूह है, अलबत्ता अगर शिफ़ा हासिल करने की नियत से उन बर्तनों को इस्तेमाल करें, तो हर्ज नहीं |
- कुरआन का तर्जुमा फारसी या उर्दू या हिन्दी या किसी और जुबान में हो तो उसे भी छूने और पढ़ने में कुरआन मजीद ही के जैसा हुक्म है,
- बे वज़ू नापाक लोग और हैज निफास वाली औरतों को कुरआन मजीद देखने में कोई हर्ज नहीं, अगर चे हुरूफ़ पर नजर पड़े और अल्फ़ाज़ समझ में आयें और दिल में पढ़ते जाएं |
قرآن پاک چھونے کے 7 احکام